और कितने बार तुम आऔगे , किस किस रुप में आऔगे,
अगर पाप पुण्य ये खेला हे, सच झुठ का मेला है ,
फिर तुम क्यौं आते हो ।
कंस मरा, रावण हारा, दुर्योधन का संहार भला
फिर भि पाप के बौझ से भारि हे धरातला,
फिर तुम क्यौं आते हो।
मन भि त्रस्त तन भि त्रस्त यै कैसा ऊलझन हे ,
कया सच सहि मै कमजोर हे, पाप ईतना पुरजोर हे,
फिर तुम क्यौं आते हो।
ईस बार आना भले मत जाना ,
जड सै मिटादो ईस पाप को , अंत करादो इस झुठ को,
सच हि सच हो, पुण्य हि पुण्य हो ,
फिर तुम क्यौं नहि आते हो ।
By Debendra Rath
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