Sunday, July 17, 2022

मन कि आँख

 इस आशा से आकाश के ओर देखता रहा, पलक को भी वझल होते नहीं दिआ । कहि ऊपर से मा गौरी ओर बाबा भोलेनाथ देखते होंगें, कृपा बर्षाऐ होगेँ। 

और मैं न अधाँ बनजाउँ। 


फिर से हालात पर तरसु, खुद को कोषुँ, भाग्य पर रोऊँ। 

ये भूल न होगा दोबारा ।


आँखे तो खुली है अब मन का आँख भी खोलदुँ ।

इस बार कृपा के थैली हमारी होगि।


देबेनद्र रथ

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