इस आशा से आकाश के ओर देखता रहा, पलक को भी वझल होते नहीं दिआ । कहि ऊपर से मा गौरी ओर बाबा भोलेनाथ देखते होंगें, कृपा बर्षाऐ होगेँ।
और मैं न अधाँ बनजाउँ।
फिर से हालात पर तरसु, खुद को कोषुँ, भाग्य पर रोऊँ।
ये भूल न होगा दोबारा ।
आँखे तो खुली है अब मन का आँख भी खोलदुँ ।
इस बार कृपा के थैली हमारी होगि।
देबेनद्र रथ
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